About Shri. Dharmpal

Born in 1922, Dharampal had his first glimpse of Mahatma Gandhi around the age of eight, when his father took him along to the 1929 Lahore Congress. A year later, Shardar Bhagat Singh and his colleagues were condemned to death and executed by the British.

Dharampal still recalls many of his friends taking to the streets of Lahore, near where he lived and shouting slogans in protest. Around the same period, there were excited discussions, especially in school, about whether the British should leave India.

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Literature By Shri. Dharampal


धर्मपाल के प्रति

  • एक बार आधुनिक ​शिक्षा पद्धति से जो गुजर जाते हैं, उनके लिए व्यूह-रचना से बाहर निकल कर खुली दिशाओं को देख पाना भी एक बहुत बड़ा पुरूषार्थ है। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में ऐसा पुरूषार्थ करने वाले गिने-चुने लोग ही हुए हैं। एक ओर तथाकथित नितान्त परम्परावादी लोग आधुनिक सभ्यता अथवा आधुनिक ​ शिक्षा  से घबराकर कछुए की तरह अपनी खोल में सिमट कर बाह्य जगत से आँखें मोड़ लेते हैं और पारम्परिक विद्या को वर्तमान संदर्भ तक पहुँचाने में असमर्थ हो जाते हैं। ऐसे लोगों के पास कितनी भी विद्याओं का ज्ञान-भण्डार क्यों न हो, लोग सरलता से उनको पिछड़ेपन या दकियानूसी के रूप में खारिज कर देते हैं। इसलिए आधुनिक ​ शिक्षा  से होकर परम्परागत विद्याओं को देखने वालों की वि​शेषता यह होती है कि वह आधुनिक शिक्षा की सीमाओं को भली प्रकार जानते हुए, परम्परागत विद्याओं की श्रेष्ठता को पहचानते हुए वर्तमान संदर्भ से उसे जोड़कर देख सकते हैं ओर प्रचलित भाषा में उस रहस्य का उद्घाटन भी कर सकते हैं। आचार्य धर्मपालजी ऐसे लोगों में थे जो आधुनिक ​ शिक्षा  से भलीभांति ​शि​क्षित होकर परम्परा की ओर मुड़े और उसकी गहराइयों में प्रवे​श कर पाए। इस प्रक्रिया में आधुनिक ​ शिक्षा बाधक नहीं, अपितु सहायक बनी। आधुनिकता को जानते हुए पारम्परिक विद्या के दृष्टिकोण से जब जगत को देखते हैं तो वहां पर एक सम्यक् दृष्टि की उत्प​ति होती है। ऐसे ज्ञाताओं की अग्रिम पंक्ति में थे- श्री धर्मपाल। गांधीजी के विचारों का धर्मपालजी ने केवल अकादमिक अध्ययन ही नहीं किया है, अपितु पूर्णरूप से उन्होंने उस ​दर्शन को जिया भी है। प्राचीन भारतीय सभ्यता एवं सामाजिक व्यवस्था के अकाट्य तथ्य एवं साक्ष्य के माध्यम से युक्तिसंगत एवं प्रामाणिक व्याख्या जो धर्मपालजी ने दी है, वह अत्यंत ​ महत्वपूर्ण है।
  • सामदोंग रिन्पोछे

    ( प्रसिद्ध चिन्तक -बौद्ध ​दार्शनिक )  

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